बसंत
विधा- विधाता छंद
मापिनी-1222-1222, 1222-1222
सुखद ऋतु राज आये हैं,प्रकृति यह झूम कर गाई ।
खिले हैं पुष्प आशा के, लहर आनंद की छाई।
खिली है खेत में सरसों, मटर भी साथ में फूले।
लगे हैं आम में बौरें,लचकती डालियाँ झूले।
खिली कचनार की कलियाँ, भरी है पुष्प से डाली,
अनोखी है छटा भू की, पथिक भी रास्ते भूले।
धरा ओढी चुनर पीली, महक शोभा अधिक पाई।
सुखद ऋतु राज आये हैं, प्रकृति यह झूम कर गाई ।
सुहाना हो गया मौसम, पपीहा तान में बोले।
करे उर तार को झंकृत, दिलों में रस सरस घोले।
गजब अद्भुत नज़ारे है, मगन खग वृंद गाते हैं-
भरे है पुष्प मधुवन में, मधुप प्याला लिए डोले।
लिए रस गंध मादकता, चली मदमस्त पुरवाई।
सुखद ऋतु राज आये हैं, प्रकृति यह झूम कर गाई ।
निखारे रूप अवनी का, सजी है रंग रंगोली।
उड़ानें तितलियाँ भरतीं, बना कर एक जुट टोली।
उठाया काम शस्त्रों को, प्रणय षटकीट दल आतुर-
सुधा टपके रसालों से, सरस मधुमास की बोली।
बसंती रंग खुशियों के, कलश में घोल कर लाई।
सुखद ऋतु राज आये हैं, प्रकृति यह झूम कर गाई ।
फुलाएँ पेड़ महुआ के, वनों में ढ़ाक मुस्काये।
बरसती नेह की बूँदें, घटा जब व्योम में छाये।
खिली है धूप सुखदायी, छटा अनुपम उकेरी है-
भरा है हर्ष से आँचल, बसंती गीत सब गाये।
हुआ है अंत पतझड़ का,मधुर मधुमास फिर आई।
सुखद ऋतु राज आये हैं, प्रकृति यह झूम कर गाई ।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली