बसंत बहार
मेरी जिंदगी मेरा करार हो तुम
जिसे टूट कर चाहा वो प्यार हो तुम
बेनूर थी जिंदगी तेरे आने के पहले
मेरे जीवन की बसंती बहार हो तुम
थपेड़ों से जैसे थक सा गया था
उलझनों में जमाने की उलझ सा गया था
अपने भीतर का इंसान खो गया हो जैसे
मैं कौन हूं यह भी भूल सा गया था
तुम जो आए तो जैसे बहार आ गई
जिंदगी में मेरे तरुणाई आ गई
गीत और शब्द पीछे कहीं छूट गए थे मेरे
प्रेरणा से तेरी अब इनमें जान आ गई
इति।
संजय श्रीवास्तव
बीएसएनएल,बालाघाट मध्यप्रदेश