बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
प्राचीन काल से भारत ,नेपाल और बांग्लादेश में एक जैसी ऋतुएं, एक जैसी बनस्पति, एक जैसी जलवायु है। यहां छ: ऋतुओं का आनंद मिलता है। कभी अत्यधिक गर्मी तो कभी अत्यंत ठंड तो कभी वर्षा ऋतु की उमस भी झेलनी पड़ती है। यहां प्रत्येक ऋतु का आनंद का आशय यह है कि ईश्वर प्रदत्त प्रत्येक वस्तु का आनंद ही लेना चाहिए। यदि सारा साल सम ऋतु ही रहती तो अन्य ऋतुओं का आभास न होता। अधिक गर्मी न पड़ती तो सर्दी की प्रतीक्षा न होती और अधिक सर्दी न होती तो गर्मी की प्रतीक्षा न होती। अतः सभी ऋतुओं में बसंत ऋतु अति मनभावन अति मनचाही ऋतु है।
यह ऋतु माघ महीने की शुक्ल पंचमी तिथि को आती है। इसी दिन सभी विद्याओं की प्रदाता व संगीत के समस्त स्वर लहरियां फैलाने वाले महा देवी सरस्वती प्रकट हुई थी। और इसी दिन से बसंतोत्सव की शुरुआत हो जाती है और यह होली तक चलने वाला उत्सव होता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का निर्माण किया तो वह अपनी रचना को देखने के लिए पूरी दुनिया के भ्रमण पर निकले। इस यात्रा के दौरान उन्होंने दुनिया को शांत और उदास पाया तो ब्रह्माजी पहुंच निराश हुए इस सोच के साथ ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल की कुछ बूंदे हवा में उछली तो एक अत्यंत सफेद चमकीला प्रकाश प्रकट हुआ। उस प्रकाश से अत्यंत रूपवान सरस्वती की उत्पत्ति हुई। देवी के हाथों में वीणा पुस्तक माला थी ।जैसे ही माता सरस्वती ने वीणा की तान छेड़ी तो सब जीव जगत को वाणी मिल गई। इसीलिए माता सरस्वती को वागेश्वरी ,भगवती ,शारदा ,वीणा वादिनी ,और वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। और इसी दिन से बसंत ऋतु का आरंभ हो जाता है ।बसंत पंचमी के दिन किसी भी अच्छे कार्य का शुभारंभ बिना किसी मुहूर्त से किया जा सकता है। इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण कर पीले फूल, पीले फल व पकवान से माता सरस्वती की पूजा की जाती है। इसे मदनोत्सव और ऋषि पंचमी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और रती कामदेव की भी पूजा होती है। पुराने शास्त्रों तथा अनेक काव्य ग्रंथों में इस त्योहार का अलग-अलग चित्रण मिलता है।
भौगोलिक दृष्टि से इसे प्राकृतिक उत्सव का भी पर्व माना जाता है। इस ऋतु में गर्मी और सर्दी का संतुलन बना रहता है ।शरद ऋतु के जाने से प्रकृति करवट लेती है। मानो गहरी नींद से उठने के पश्चात नहा कर नवल पीत श्रृंगार कर रही हो।वनस्पतियों पर नए पल्लव आ जाते हैं वसुंधरा पीत पुष्पों का श्रृंगार कर मानो स्वर्ण गहनों से अलंकृत हो जाती है ।तरुओं से बेला लहराकर पंखा झोलती है। सेमल, टेसू के फूल अंगारों से दहकते प्रकृति को शोभायमान करते हैं। सरसों के पीले फूल पवन संग खूब झूमकर मस्ती करते हैं। वन -बागों में फलदार वृक्ष फूलों से लग जाते हैं। रंग- बिरंगी तितलियों का फूल फूल पर उड़ना ,भंवरों का गुनगुन कर मंडराना ,कोयल- पपीहे की तान ,पक्षियों का कलरव हवा की सितार ,मयूरो का नृत्य ,हिमखंडों का पिघल कर नदी नालों का बहना प्रकृति का श्रृंगार कर अत्यंत शोभायमान करते हैं।
बसंत ऋतु पर पक्षियों की उन्मुक्त उड़ान के साथ-साथ पतंगों की उड़ान का दृश्य भी देखने को मिलता है। वैसे तो पतंग उड़ाने का रिवाज चीन से आरंभ हुआ था और यह धीरे-धीरे सब जगह फैल गया। भारत में पतंग उड़ाने को लेकर एक दुखद घटना है।
बसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। वीर हकीकत राय जब छोटे थे तो अन्य बच्चों के साथ पाठशाला पढ़ने जाते थे। एक दिन मुल्लाजी किसी काम से पाठशाला छोड़ कर चले गए तो सब बच्चे खेलने लग गए परंतु हकीकत राय पढ़ता रहा। जब दूसरे बच्चों ने उसे पढ़ाई करते खूब छेड़ा तो हकीकत राय ने उन्हें माता दुर्गा की सौगंध दी। इस पर सभी मुस्लिम बच्चों ने माता दुर्गा की खूब हंसी उड़ाई और उपहास किया। इस पर हकीकत राय ने उनसे कहा कि यदि वे तुम्हारी बीवी फातिमा के बारे में कुछ कहे तो तुम्हें कैसा लगेगा, फिर क्या था, मुल्लाजी के आते ही उन सभी शरारती बच्चों ने हकीकत राय की शिकायत कर दी कि वह हमारी बीबी फातिमा को गालियां दे रहा था। बस फिर क्या था बात बढ़ते- बढ़ते काजी तक पहुंच गई।। मुस्लिम शासन में निर्णय यह हुआ कि या तो हकीकत राय मुसलमान बन जाए या इसे मौत के घाट उतार दिया जाए। परंतु हकीकत राय ने मुस्लिम धर्म अपनाने से मना कर दिया अतः उसे सिर कलम करने का फरमान जारी हुआ।
कहा जाता है की हकीकत के भोले मुखड़े को देकर जल्लाद के हाथों से तलवार गिर गई थी, तब हकीकत ने जल्लाद के हाथ तलवार थमाते हुए कहा कि जब मैं बच्चा हो करके भी अपने धर्म का पालन कर रहा हूं तो तुम क्यों अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हो। तब जल्लाद ने अपने सीने पर पत्थर रखकर हकीकत पर तलवार चला दी। कहते हैं धर्म पालन करते हुए हकीकत का सिर भूमि पर नहीं गिरा वह आकाश मार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना 23 फरवरी 1734 ईस्वी को बसंत पंचमी के ही दिन हुई थी।
पाकिस्तानी यद्यपि मुस्लिम देश है फिर भी हकीकत की याद में बसंत पंचमी के दिन पतंगे उड़ाई जाती है हकीकत लाहौर का निवासी था अतः पतंगबाजी का त्योहार लाहौर में सबसे अधिक मनाया जाता है।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश