बसंत के गीत
कहीं तीसी फुला गइल,
कहीं मिसरी घुला गइल।
इ बसंत आवत – आवत,
हियरा जुड़ा गइल।
लीचियो के डारी मोजर,
अमवो के गाछ साजल।
कोइली विदेशी आके,
सब डार – पात नाचल।
गेंदा फुला गइल ह,
उड़हुल फुला गइल बा।
मह-मह करके सगरो,
केतकी झूला गइल बा।
मन आगु-पाछु डोले,
सब गाछ कोंढ़ियाइल।
जैसे कि जोजनगंधा,
देहिया छुआ गइल।
सरसों के फूल पियर,
मेहंदी के पात हरियर,
झूम-झूम के नाच उठल।
फागुन में ढाब -दीयर,
चंदा केहू निहारे,
केहू बन जाली चकोरी।
मन ही में मुस्काली,
नेहिया के बन नटोरी।
अँखिया में नेह ले के,
जिए जहान सारा।
सगरो बसंत झहरे,
जिनगी बने सहारा।