बसंत का महीना।
गेंदों की इक टोली बागों में खेल रही थी,
सरसों के आँचल हर मन को टटोल रही थी।
कुछ हरे कुछ पीले रंगो को समेट रही थी
वो नन्हें गुलाबी गाल हर रंग को पीछे छोड़ रही थी,
गेंदों की इक टोली बागों में खेल रही थी।
कोमल हथेलियों की जंजीर खेल कोई खेल रही थी,
फूलों की हर पंखुड़ी भी संग उनके डोल रही थी।
बहती सर्द हवाएँ सुर्ख होटों को चूम रही थी,
चुपकर गुजरे जिस गली महक अपना छोड़ रही थी।
गेंदों की इक टोली बागों में खेल रही थी।
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गेंदा- नन्हे बच्चे।
टोली- झुँड।
आँचल- छाया।