बसंत ऋतु
कुकुभ छंद
विषय- बसंत ऋतु
मात्रा- 16/14
अंत,-22
पहन बसंती साफा छुपकर,कौन चमन शर्माता है?
कली-कली से लाड़
लड़ाए,पात-पात भरमाता है।
तरुवर -तरुवर झूम झूम कर, अंग अंग महकाता है।
छेड़ -छेड़ कर डाल- डाल को, सोई नींद जगाता है।
चंद्र- चांदनी आ नहलाए, ओस उवटन लगाता है।
केश विन्यास करे मारुती, प्रभात रंग रचाता है।
देह धारण करे पीत वसन, मधुर गंध महकाता है।
कदम-कदम पर रंग सुनहरा,दिनकर आ फैलाता है।
पवन रथ पर हो सवार जब,सन-सन राग सुनाता है।
झूम उठी है बेला -बेला, खग कलरव बढ़ जाता है।
जीव जगत भी प्रेमातुर हो,नित-नित स्वांग रचाता है।
सब ऋतुओं का राजा जब-जब ,झूम जगत में आता है।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश