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16 Feb 2024 · 1 min read

बसंती हवा

सरसराती चली बसंती हवा
इसने मुझे मदहोश किया

फूल ने फूलों के कानों में
होले से कुछ कहा
मुस्कुरा उठी हर पंखुड़ी
हर शाख हर डाली डाली
जहाँ तक हमने नज़र डाली

सरसराती चली बसंती हवा
इसने मुझे मदहोश किया

भंवरे ने फूल के शाने पर सिर रखकर
कोई सुंदर सा गीत गाने लगा
तुम पर कुदरत कितनी मेहरबान है
रंगों की छूटी है जैसे पिचकारी
ऐसी है तुम पर रंगों से चित्रकारी

सरसराती चली बसंती हवा
उसने मुझे मदहोश किया

यह नदिया के धारे
यह तालाब के किनारे
खिलते कमल न्यारे न्यारे
लो देखो बसंत के नज़ारे
बाग में आई है बहारें

सरसराती चली बसंती हवा
इसने मुझे मदहोश कि

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