बसंती पुरवइया
चली बसन्ती पुरवइया और बाग हुआ मतवाला
नन्ही कपोलों से सज गया, तरुवर का पत्ता डाला
करे अलाप की कोयल तैयारी, छाने लगी नव हरियाली
खिले सरसो के संग सुमन, महक उठी डाली डाली
होकर प्रसन्न कामदेव ने बसन्ती रंग डाला
ज्ञान, ध्यान, शिक्षा की ऋतू है, परीक्षा की बारी आई
उड़ने लगेगा फ़ाग मार्ग में, मकरंद सुगंधि है बिखराई
गीत गाये अमुवा की डाली रति ने कंठ हार डाला
सौंदर्य प्रधान ये समय सुहाना, रँगों का है मौसम लाया
संस्कृति सभ्यता भारत की, नव वर्ष का सन्देशा लाया
त्याग भूमि के बलिदानों ने था, बसन्ती रंग डाला
शिक्षा की देवी को मनाकर, नव युग का आरम्भ करें
विश्व गुरु राष्ट्र हमारा, तक्षशिला का शंखनाद करें
सिंह के दांतों को गिनकर, नाम भूखण्ड का रख डाला
योग विज्ञान अध्यात्म की धरती, प्रेम करो ये कहती है
असंख्य धर्म संस्कृतियों को, गोद में अपने रखती है
याद करो राणा प्रताप का तूफानी चेतक और भाला
करें आवाहन नवकोपल पीड़ी को, और महत्व बतलायें
करें सुदृढ़ भविष्य को, अपने नवदीप प्रज्ज्वल करवाएं
गान करें गौरव गाथा का ,और बसन्त की दे माला