Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jul 2021 · 2 min read

बल्लू का जाना

24• बल्लू का जाना

कालू, दुल्ली और बेटा बल्लू ।जंगल में अपनी बिरादरी में कालू का परिवार सबसे छोटा था।लेकिन जंगल में फिर भी भोजन की कमी पड़ जाती थी।अब उसका परिवार भले छोटा था,औरों के परिवार तो अधिकतर बड़े ही थे।आजकल सबके लिए वन में भोजन मिलना मुश्किल हो रहा था।अधिकांश परिवार जंगल से बाहर सुबह ही शहर की ओर भोजन के जुगाड़ में निकल जाते थे ।कालू का परिवार सदा वन में ही रहता था ।आज दुल्ली के कहने पर उसके साथ वह भी बेटे बल्लू को लेकर जंगल के कोने से सटे शहरी आबादी के किनारे के एक मुहल्ले की तरफ सुबह-सवेरे निकल पड़ा ।मुहल्ले के किनारे ही एक बड़े से घर में दुल्ली ने जंगल के एक ऊंचे पेड़ से एक दिन अमरूद का पेड़ देख रखा था जो काफी फला हुआ था।
आज उसी के झुरमुटों में बैठ कर पूरे परिवार की अमरूद के दावत की योजना थी।जंगल से उछलते-कूदते तीनों बाहर निकले।एक नया अनुभव होने जा रहा था ।पास ही एक छोटा-सा पुल था, जिसे पार करना था। पुल से तमाम गाड़ियों की आवाजाही थी।दोनों तरफ बिजली के खंभे थे जिनके बीच काले रंग के मोटे केबल बंधे उस पार गए थे ।शायद वाई-फाई या केबल टीवी वालों ने लगा रखे थे ।पूरा परिवार उसी केबल पर झूलकर उस पार निकल गया ।बल्लू भी माँ-बाप के पीछे-पीछे उनकी ही नकल करता झूलता-खेलता पार हो गया।भोर का समय होने से मकान वाले अभी भी जगे नहीं थे। अमरूद के झुरमुट में जगह
-जगह बैठकर सभी भर पेट अमरूद खाए और गिराए।पेट भरने के बाद अब आगे शहर टटोलना बेकार था।वन में जाकर किसी बड़ी डाल पर आराम करना था।
वापसी यात्रा का रास्ता भी वही सही लगा जिधर से आना हुआ था।सभी वैसे ही वापस चल पड़े ।इसबार कालू आगे, दुल्ली सुरक्षा में सबसे पीछे और बीच में बल्लू वैसे ही केबल के रास्ते पुल पार किए।लेकिन वापसी में एक हादसा हो गया ।लोहे के खंभे पर एक कोई बिजली का छोटा डिब्बा लगा था जिसका ढक्कन पूरा बंद नहीं था।बच्चा बल्लू वहीं ठिठक गया और ढक्कन खोल कर भीतर झाॅककर खेलने लगा ।पता नहीं कैसे उसे बिजली छू गई और वह नीचे जमीन पर गिर पड़ा ।माँ-बाप जबतक दौड़े तबतक उनका प्यारा बेटा बल्लू चल बसा था।कालू और दुल्ली के दुख की कोई सीमा नहीं थी।दोनों वहीं गमगीन बैठे रहे।आते-जाते लोग भी इस घटना से बहुत दुखी थे।जंगल में बंदरों को पता चला ।सब आकर दोनों को ले गए ।आगे से उन्हें जंगल से बाहर इंसानी बस्ती में जाने से मना किए, इस आश्वासन के साथ कि उनके लिए वे फल और पत्ते लाएंगे । लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था ।सुबह-सवेरे सभी वानरों ने देखा कि कालू और दुल्ली दोनों ही पास के कूंए में डूब कर आत्महत्या कर चुके थे ।शायद ऊपर वाले ने उन्हें उनके बेटे के पास बुला लिया था ।
बल्लू का जाना वाकई बहुत दुःखद था।
********************************************
—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित,11/07/2021•

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 425 Views
Books from Rajendra Gupta
View all

You may also like these posts

बददुआ देना मेरा काम नहीं है,
बददुआ देना मेरा काम नहीं है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
तुम्हें युग प्रवर्तक है शत-शत नमन।।
तुम्हें युग प्रवर्तक है शत-शत नमन।।
अनुराग दीक्षित
गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
Johnny Ahmed 'क़ैस'
सावन गीत
सावन गीत
Pankaj Bindas
मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।
मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।
Anil Mishra Prahari
जानेमन
जानेमन
Dijendra kurrey
अंधेरे से लड़ो मत,
अंधेरे से लड़ो मत,
नेताम आर सी
दरसण करवां डोकरी, दर पर उमड़ै भीड़।
दरसण करवां डोकरी, दर पर उमड़ै भीड़।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
!..........!
!..........!
शेखर सिंह
आटा
आटा
संजय कुमार संजू
*वर्तमान को स्वप्न कहें , या बीते कल को सपना (गीत)*
*वर्तमान को स्वप्न कहें , या बीते कल को सपना (गीत)*
Ravi Prakash
कर्म योग
कर्म योग
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
"हकीकत"
Dr. Kishan tandon kranti
वह कौन सा नगर है ?
वह कौन सा नगर है ?
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या
Sudhir srivastava
मुक्तक _ दिखावे को ....
मुक्तक _ दिखावे को ....
Neelofar Khan
वक्त तुम्हारा साथ न दे तो पीछे कदम हटाना ना
वक्त तुम्हारा साथ न दे तो पीछे कदम हटाना ना
VINOD CHAUHAN
जिंदगी है कि जीने का सुरूर आया ही नहीं
जिंदगी है कि जीने का सुरूर आया ही नहीं
कवि दीपक बवेजा
बदल सकती है तू माहौल
बदल सकती है तू माहौल
Sarla Mehta
#वीरबालदिवस
#वीरबालदिवस
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
तितलियों जैसे पल।
तितलियों जैसे पल।
Kumar Kalhans
मेरे वर्णों को नया आयाम दिया
मेरे वर्णों को नया आयाम दिया
Pramila sultan
2612.पूर्णिका
2612.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
दुःख  से
दुःख से
Shweta Soni
काश.! मैं वृक्ष होता
काश.! मैं वृक्ष होता
Dr. Mulla Adam Ali
*चुप रहने की आदत है*
*चुप रहने की आदत है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
"सच के खिलाफ विद्रोह करते हैं ll
पूर्वार्थ
☺️दो-टूक☺️
☺️दो-टूक☺️
*प्रणय*
ख़्याल इसका कभी कोई
ख़्याल इसका कभी कोई
Dr fauzia Naseem shad
तुम आये तो हमें इल्म रोशनी का हुआ
तुम आये तो हमें इल्म रोशनी का हुआ
sushil sarna
Loading...