बलात-कार!
ये सामान्य चिता नहीं है
ये चिता- सामुहिक बलात्कार से पीड़ित
उस बेटी है, जिसके जिंदा मासूम शरीर को
हवस में बदहवास नर पिशाचों ने अंग-प्रत्यंगों को
नोच नोच कर विच्छिन्न किया ।
अथाय अंतहीन दर्द को सहते हुए
निःशब्द रह शिर्फ़ आँखों से
अविरल अश्रुधारा बहाते हुए
स्त्री होने के अभिशाप को
ध्यान से देखो-
इस चिता के साथ-
जल रही है “मानवता”
जल रही है “करूणा”
जल रहा है “न्याय”
जल रही है “सामाजिक समरसता”
जल रहे हैं “संस्कार”
©अमित (अमित्या)