बलात्कार पीड़िता का दर्द
उन दरिंदों ने तो सिर्फ एक बार मेरा बलात्कार किया था,
पर समाज ने, मीडिया ने, कानून ने तो बार बार किया था।
जब से लोगों को पता चला कि मैं बलात्कार की पीड़िता हूँ,
तब से हर एक नजर ने मेरी इज्जत को तार तार किया था।
दरिंदों के बाद बलात्कार की शुरुआत हुई थी पुलिस थाने में,
घायल हो चुकी आत्मा पर बेहूदे सवाल से प्रहार किया था।
पुलिस थाने से निकली तो मीडिया ने लहूलुहान कर दिया,
बस हाथ जोड़कर मैंने अपनी बेबसी का इजहार किया था।
अदालत में वकीलों की जिरह ने मुझे छलनी ही कर दिया,
चुभते सवालों और बातों के तीर से मुझ पर वार किया था।
घर वाले इस दुःख में साथ खड़े जरूर थे पर टूट चुके थे,
मेरे साथ हुए हादसे ने घर वालों को बना लाचार दिया था।
ये समाज वाले दबी जुबान में मुझे ही दोषी ठहरा रहे थे,
मेरे मरने से सब ठीक हो जायेगा फिर मैंने विचार किया था।
इज्जत से जीने तो ये समाज वैसे भी नहीं देता मुझे यहाँ,
इसीलिए मैंने फाँसी के फंदे को अपने गले का हार किया था।
सुलक्षणा इज्जत से जी सकें मेरे जैसी ऐसा समाज बनाओ,
हकीकत यही है मुझे इस समाज की बेरूखी ने मार दिया था।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत