बलात्कार की सजा
जो लूट रहे है अस्मत मेरे देश की, माताओ और बहनो की //
इन जैसे गद्दारो को, अभी सजा सुनाना बाकी है //
फांसी मे चढ़ाने से पहले, एक शर्त हमारी बाकी है //
इन नामर्दो को निर्वस्त्र करके, नगरभ्रमण अभी बाकी है //
फांसी से पहले इनके अंग-अंग का, छिन्न-भिन्न होना बाकि है //
मुँह मे कालिख पोत के इनके, नगर घुमाना बाकि है //
इनके अंगों के टुकड़ो को अभी, स्वानो को खिलाना बाकि है //
स्वान भी थूक गया टुकड़ो को, इतने बड़े ये पापी है //
मेरे विचारो से बलात्कारियो की, ये सजा काफ़ी है //
मेरे विचारो से बलात्कारियो की, ये सजा काफ़ी है //
:-कविराज श्रेयस सारीवान