बलराम विवाह
रेवतक राजा सतयुग माही।
सुता रेवती जैसी कोई नही।।
गुणी सयानी शिक्षित नारी।
सुयोग्य वर की चिंता भारी।।
भूपति ने सकल जग छाना।
मिलहि न वर सुता सम जाना।।
ब्रह्मदेव ही अब एक सहारा।
तनया तात ब्रह्मलोक पधारा।।
तहाँ चलत रही वेद गंधर्व गाना।
क्षण काल भूप लिए विश्रामा।।
अवकाश पावहिं करी प्रणामा।
कही व्यथा अभिप्राय जाना।।
राजन से बोले ब्रह्मा मुस्काना।
युग सहस्त्र बीते सोई जाना।।
जिन के किन्ही योग्य विचारा।
तेही सब के काल संहारा।।
भू पर बलदेव श्रेष्ठ सुकुमारा।
कृष्ण भ्रात शेषनाग अवतारा।।
सुनी प्रसन्न नृप भूलोक पधारे।
जहँ त्रेता बीत लगा द्वापर द्वारे।।
भई चकित देख पृथ्वी नजारा।
मनुज जीव क़द छोट अकारा।।
छोटे क़द के बलदेव लाला।
तिन्ही अपेक्षा रेवती लंबी बाला।।
चिंतित विवाह कैसे होई विचारे।
तनया ले बलदेव के समुख ठारे।।
हल प्रहार से शिरोस्थल दबाया।
रेवती की छोटी कर दी काया।।
मुदित मन रेवती दाऊ परणाई।
तात प्रसन्नता बरनी न जाई।।
सुता विवाह होई हर्षित नयना।
बद्रिका आश्रम कियो प्रस्थाना।।
रेखांकन।रेखा