बर्फ का गोला
आज फिर वही तपती दोपहर थी
वही पगडंडी थी .वही गर्म रेत थी
नही थे तो बस तुम!!!
याद है …हम दोनो घंटों उस पगडंडी पे
बर्फ के गोले वाले का इंतजार करते थे .
सच तो ये है ..एक दूसरे को करार दिया करते थे
उसके आते ही तुम चाशनी की मॉग करते थे
और मै काला खट्टा की जिद्द करती थी
जिदंगी बर्फ के गोले जैसी सिमट गई है
जरा सी गर्माहट पे पिघल जाती है
काश! वो दिन फिर से लौट आए !!
मै चाशनी मे घुल जाउंगी
तुम काला खट्टा खा लेना