बरहम बाबा गीत बनाम बराहमन गीत।
बरहम बाबा गीत बनाम बराहमन गीत।
-आचार्य रामानंद मंडल।
बरहम बाबा गीत आ बराहमन गीत के घालमेल शर्मनाक कृत्य हय ! फेसबुक वॉल पर आयल कमेंट पर विचार।
रेवती रमण झा -तुरन्तमे कोनो निर्णय पर पहुंचब जल्दबाजी हैत।ई लोक आस्था आ लोक परंपरा अछि कि घालमेल ,से एहि पर शोध कयल जाउ। मिथिलाक प्रायः: हर पैघ गाममे ब्रह्म-स्थान आ सलहेस- स्थान अछि।मैथिलक खासक’ ब्राह्मण के हर शुभ काजक शुभारंभ ब्रह्मक गीत आ पूजास’ होइत रहल अछि।हुनका दूधपीठ आ छाग बलिक संग जनेऊ चढेबाक सेहो परंपरा अछि।तेँ ब्रह्मके ब्राह्मण कहब ,हुनक सम्मान अछि आ कि जातीय संबोधन ,सेहो शोधक विषय अछि। कहीं सभ गामक ब्रह्म (ब्रह्ममे लीन आत्मा) ब्राह्मणे त’ नहि छलाह।
जँ ई सत्य ,तखन त’ हुनका ब्राह्मण बाबू संबोधन करब कोनो अनुचित नहि।
-आचार्य रामानंद मंडल-Rewati Raman Jha ब्राह्मण के ब्रह्म कहब अनुचित। भगवान के वर्ण वा जाति मे बंधनाइ धृष्टता के अलावा कुछ न हय। एकरे ब्राह्मणवाद कहय छैय।वोना सभ ब्रह्ममय हय।अहं ब्रह्मास्मि।डोम सेहो ब्रह्ममय हय। कुत्ता सेहो ब्रह्ममय हय।कि अंहा ब्राह्मण छी तैइला ब्रह्ममय छी। बौद्ध विचारक पिपर के वृक्ष तर ध्यानस्थ बुद्ध के ब्रह्म कहैय छैय।सधन्यवाद।
रत्नेश्वर झा -अपने कतय फंसि गेलौं|
संकिर्णता स नै, विराट सोच स मिथिला आ मैथिली के कल्याण हेतैक.
ब्राह्मण गीत आ ब्रह्म बाबा गीत फराक छैक.
मिथिला सकल समाज के ब्रह्मज्ञानी देखय चाहैत अछि.
जेकरा ज्ञान छै, ब्रह्मगुण छै तकर अपमान कोनो ज्ञानी नै क’ सकैछ, अज्ञानी किछु क सकैया|
आचार्य रामानंद मंडल -Ratneshwar Jha जी। ब्राह्मण गीत आ बरहम बाबा गीत आलग छैय आ होय के चाही। मिथिला मैथिली आ मिथिला राज्य निर्माण के मंच पर ब्रह्म बाबा के गीत होय परंच ब्राह्मण बाबू गीत न गाबे के चाही।असल में मिथिला मैथिली आ मिथिला राज्य निर्माण संस्कृति से जुडल हय। हमरा विचार से त इ बिल्कुल राजनीतिक होय के चाही। परंच मिथिला मैथिली आ मिथिला राज्य निर्माणी सभ गंडमगोल क देलय हय त विचार प्रकट करनाई त आवश्यक हय। सधन्यवाद।
रत्नेश्वर झा -Rama Nand Mandal आ ज संपुर्ण समाज के ब्रह्मज्ञानी बना देल जाय, सब ब्राह्मण भ जाय, तखन त आरो नीक ने.
ज्ञान लग, सुचिता लग स्वच्छता लग कोनो जातियता नै छै.
सभक जड़ि छै, अज्ञानता|
रत्नेश्वर झा -ई जतेक गंडमगोल देखाईत अछि, सब अज्ञाताक परिणाम छै.
आचार्य रामानंद मंडल -Ratneshwar Jha सच कहल जाइ त ज्ञानीये गंडमगोल करैय छैय।मूर्ख त निर्मल होइ छैय।वोकरा गंडमगोल करे के ज्ञान कंहा होइ छैय।
मिथिला -मैथिली मंच के मशहूर गीत।
ब्राह्मण गीत कि बरहम बाबा के महिमा गान हय कि बाभन महिमा गान हय !
रेवती रमण झा -हमसभ जनैत आयल छी जे “ब्राह्मण ” के संबोधित ई गीत ग्राम देवता/डीहबार/ब्रह्म/बरहम बाबाक गीत अछि। मिथिला संस्कृतिमे प्रत्येक शुभ काजक शुभारंभ गोसाउनिक गीत आ ब्राह्मण बाबूक गीतस’ होइयै ।
एहिमे ब्राह्मण बाभन जाति विशेष के लेल नहि,अपितु अपन गामक अराध्य देव बरहम बाबाक लेल प्रयोग कयल जाइत अछि।जत’ बरहम बाबाक मंडप/गहबर रहैयै ओकरा ब्रह्म -स्थान कहल जाइयै।
आचार्य रामानंद मंडल -Rewati Raman Jha ब्राह्मण गीत बरहम बाबा के गीत कदापि न हो सकैय हय।इ त आइ काल हम सुन रहल छी ब्राह्मण गीत। ब्राह्मण के महिमा मंडन।बरहम बाबा आ बराहमन गीत के घालमेल शर्मनाक कृत्य हय। एकरे कहल जाय छैय सांस्कृतिक बर्चस्ववाद। मिथिला मैथिली मंच पर ब्राह्मण गीत त्याज्य होय के चाही। ब्राह्मण जातीय मंच के लेल ब्राह्मण गीत ग्राह्य हो सकैय हय। सधन्यवाद।
रेवती रमण झा Rama Nand Mandal एहने एकटा गीत अछि चुमाओनक गीत।एक मंचस’ ई गीत गाओल जा रहल छल -‘चुमाबह हे ललना धीरे -धीरे।’ ई सुनि आगूमे बैसल युवा सभ ‘चुम्मा’ बुझि फ्लाइंग किस कर’ लागल ।
आचार्य रामानंद मंडल -Rewati Raman Jha फ्लाइंग किस अलग बात हय। ब्राह्मण बाबू गीत ब्रह्म बाबा गीत कदापि न हो सकैय हय। ब्रह्म बाबा गीत के पैरोडी हय ब्राह्मण बाबू गीत।परंच जान बुझ के गीतकार गायब हय। सधन्यवाद।
अइ संदर्भ मे डा महेंद्र नारायण राम के कविता -बरहम आ आयल कमेंट पर विचार।
बरहम
*****
बड पीपर
एकर गाछ
शास्त्र पुराणो मे कतोक साक्ष अछि
ई शीतल छांह
चिडै-चुनमुनि,ऋषि-मुनि,पीड़ित मनुष्य केर
आश्रय-स्थल होइत अछि
लोक-वेद दुनू मे
पीपर वृक्षराज आ बड महावृक्ष होइत अछि
प्रयाग स्थित महावृक्ष ‘वट’ सोझा
श्रीराम देखाइ पड़ैत अछि
शरदण्डाक पछिम तट पर स्थित
महावृक्ष पर देवता द्वारा
सत्योपयाचन कयल गेल अछि-
ई बड पीपर
तपोरत वन्य संस्कृति ओ परिश्रमित
ग्राम्य संस्कृतिक पोषक अछि तs
बरहम एकर धूरी ओ
ओही सत्योपयाचनक जीवन्त प्रतीक अछि
झूकर संस्कृतिक झकझूकर गीत
आ द्रविड संस्कृतिक वृक्ष पूजा
दुनू मिलिकs
बरहम विराट चेतना मे समाविष्ट अछि
ग्राम्य जीवनक समस्त गतिविधि
एतय आबि
विराम पबैत अछि
बिपैतक लगाम पबैत अछि-
ई विशाल वृक्ष
गामक कात, शांत, एकांत
फुजल स्थान पर
एकता,अखंडता,समृद्धि आ शांतिक
खिस्सा कहैत अछि
पात-पात पर देवताक भाषा अंकित अछि
गुम्फित अछि
ओकर ऊगब आ झड़ब मे
देवभाषा प्रतिबिम्बित अछि
ई नित्य हरियरी नेने
स्थिरता आ चिरंतनता कालजयी अछि
कखनो अर्पण नहि अछि-
वृक्षक नीचा बनल चबूतरा
ओहीपर स्थापित माटिक पीड़ी
सटले माटिक घोड़ा
डाढि पर लपेटल जनेऊ
पीड़ी पर अबीर
अवलेपित पीठार
ओकर वृक्षराज कहबाक खिस्सा
लोक मे सहजहि चिन्हित अछि
बरहम नामे अभिहित अछि-
एकर आश्रय अछि प्रकृति
सुख-दुःख दूटा फलक आकृति
सत्व,रज ,तम तीनटा सोन्ड
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारिटा रस
ओत,त्वचा,नेत्र, रसना,नासिका पान्चटा साधन
जन्म लेब,रहब,बढब,बदलव,घटव आ नष्ट होयब
छहटा स्वभाव
रस,रूधिर, मांसु,भेद, अस्थि,मज्जा आ शुक
छाल रूपे सातटा धातु
एकर शाखा पर
आठ तत्व, पान्च महाभूत, मन ,बुद्धि आ अहंकार
विराजमान अछि
एकर खोह मे
प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल
आ
धनंजय नव द्वार अछि
पत्ता-पत्ता पर देवत्वक वास अछि
जीव आ ब्रह्म
दूटा पक्षीक निवास अछि-
ई वृक्ष
बेस विशाल, भव्य ओ भाव्य अछि
पत्ताक सघनता, डाढिक पसरव
सीरक लटकन
कोनो जटाजूटधारी तपस्वी सं कम नहि
साधना आ तपक आकृति
एक दीप्तिक किरण अछि
एकर उमिलित नेत्र सं
चिनगी नि:सृत अछि
ललाट सं दिव्य आभन
छिटकि रहल अछि
इएह ज्योतिर्मय” पुरूष
लोक मे ‘बरहम’ छथि तs
शास्त्र मे ‘ब्रह्म ‘!
एकरा लेल ब्रह्म-गियान
वाणी, कर्मेन्द्रिय, चक्षु आ ग्यानेन्द्रिय सं विलग अछि
मन आ बुद्धि सं व्यक्त नहि होइत अछि-
वृक्ष प्रेम
मात्र लोकक सहज अनुभूति गम्य अछि
मनुष्यक सरल स्वभाव जन्य अछि
सिद्धार्थ राजप्रासाद छोड़ि बोधिवृक्ष निकट बुद्ध बनलाह
एकरे छांह मे गोपाल कृष्ण नैसर्गिक आनंद प्राप्त केलाह
वृक्षानुराग पंचवटीक शीतलता पाबि
राम शक्तिमान भेलाह
भरत भ्रातित्वक दृष्टिवान भेलाह
सम्पूर्ण मानवता एहि वृक्षक सोझा
झूकल देखाइ पड़ैत अछि
लोकजगत देदिप्यमान लगैत अछि-
ई वटवृक्ष संकल्प आ विश्वासक
पीपर विकास आ गतिशीलताक प्रतीक अछि
महुआ, प्रणय-सूत्रक
आम, तरलता आ सहृदयताक
जामुन ,समता आ समानताक
बेल,पवित्रता आ सात्विकताक
कटहर,उर्जस्विता आ ऊर्ध्वक साहचर्य अछि
भावक इएह शक्ति
शुद्धि, पवित्र आ अकृत्रिम मिलन
“बरहम”
स्वयं केर सत्ता धारण अछि-
मातृत्व रूप मे
सहचरी रूप मे
प्रतिक्षारत प्रेमिकाक रूप मे
गामक जनिजाइतक इएह असीम अनुरागक भाव
लोक मे डीहबार रूपे
ओ ग्राम देवता बनि गेलाह
बूढी माय लोकनिक वात्सल्य सोझा बबूआ बनि गेलाह
बरहम थानक सोझा
पूजन केर बहन्ने
वयस्क स्त्री लोकनिक झकझूकर खेलैत छथि
गोलाकृति मे एक-दोसरक कन्हा पर हाथ राखि
झूमि-झूमि भाओ भगैत गहबर गीत छथि
मार्मिकता, आकुलता, पियासक लोकधूनक
तजगर ई स्फूर्ति
ग्राम देवता बरहम कें समर्पण
लोकमानसक आत्मीय आकर्षण
सभ कें आकृष्ट करैत अछि
अपन सर्वस्व अर्पित करैत अछि-
ई बरहम
गामक गरीब, किसान, मजदूरक आश्रय-स्थल अछि
तप्पत औल मे असंख्य ओछाओन लगैत अछि
नटखट नेना एकर सीर कें झूला बना लैत अछि
डाढि पर चढि डोल-पात खेलैत अछि
कतोक लोक ताश खेलैत अछि
कतोक स्वाध्यायी एकर अंक मे स्वध्याय करैत अछि
ई मूलत:एक नहि अनेक अछि
कोनो पुण्यात्मा मरणोपरांत
ई पद प्राप्त कsलेने छथि
हम अपना ओहिठामक बात करी तs
आइ सं आठ सौ साल पहिने
हमर खुटौना देवनगर नामे अभिहित छल
गामक पछिम गदाल बस्ती छल
एक पैघ ऊंचगर डीह छल
कालांतर मे ओबा-फौती आयल
सभ सुतले रहि गेल
महेश ठाकुर नामे पुण्यात्मा
सभक सेवा मे जुटि गेलाह
पीड़ितक सेवा मे अपन महती योगदान देलाह-
बांचल लोक हिनका डीहक डीहबार बना
एक पैघ वेदी आ चबूतरा बना
लगे बड पीपरक एक-एकटा वृक्ष लगा
लोक- पूजन कs ग्राम देवता बना देलाह
ओ
लोकदृष्टि मे ब्रह्म पद अधिकारी भेलाह
लोकभूमि पर एक लोकदेवत्व धारित
लोक आस्था आ विश्वासक अवतारी भेलाह
आइ ओ
खुटौनाक महेश ठाकु,मैरवाक हरि राम
मझौलियाक भैया राम
बलहाक रामदुलारी
सुरहाचट्टीक मुरली
सोंधोक हजारी
किलाघाटक पुरूषोत्तम
लगुराअंवक ईश्वरीदत्त
मनियारीक कुलेश्वर
कथैया,मुजफ्फरपुर, भरकुहर ,वैशाली सहित
गाम-गाम मे
बहुतोक पुण्यात्मा ब्राह्मण-ब्राह्मणेत्तर
बरहम छथि
चन्द्रवर्णी माता
सूर्यवर्णी पिताक अग्निवर्णी पुत्र
नीला रंगक घोड़ा पर सवार छथि
हाथ मे कमल, पोथी-पुराण
गरदनि मे चम्पाक माला
कन्हा पर जनेऊ
देह मे पीताम्बर
पैर मे सोनाक खराम
मुह मे ताम्बुल रस अनुरंजित छथि
मिथिलाक लोकमूर्ति मे रूपायित
लाल पीअर धोती
फूलदार शेरवानी
गोल मुखाकृति
घनगर मोन्छ
माथ पर पाग वला अश्वारोही
लौकिक बरहम वैदिक ब्रह्म
सूर्यक बिम्ब सं प्रतिबिम्बित छथि
सर्वजातीय लोकदेव रूपे पूजित
लोकमानस लोकजगत मे लोकायित ओ प्रतिभासित छथि! ****
रेवती रमण झा -बहुत नीक आलेख। बहुत फरिछाक’ लिखल अछि।ब्रह्म शब्दक बढ़ियां व्याख्या कयल अछि।ठीक कहल जे प्रत्येक गामक ब्रह्म कोनो ने कोनो पुण्यात्मा छथि।हुनका प्रति लोक आस्था अछि।जेना हुनक रूपक वर्णन अछि।ओहो एक लोक आस्थे पर आधारित अछि।तेँ हुनका ब्राह्मण बाबू कहि गोहरायब लोक आस्थे भ’ सकैयै।ओना बहुतो गैर-ब्राह्मण लेखक एकर आलोचना करै छथि।ओ एकरा ब्राह्मणवाद मानै छथि।
मुदा हमरा नहि लगैयै जे ई लोक गीत आस्था छोड़ि आओर कोनो भावनास’ गाओल जाइयै।हमरा जनैत ब्राह्मण बाबू
कहि लोक अपन लोक देवताक प्रति सम्मान व्यक्त करैयै।
ओना अपने सभ बात स्पष्टक’ देल अछि।तथापि विवेचना त’ अपेक्षिते अछि।
रेवती रमण झा Rama Nand Mandal धन्यवाद।
पत्रकार पथिकजीक ई आलेख नीक अछि।मुदा ब्रह्म पर डा० महेन्द्र नारायण रामक व्याख्या उत्कृष्ट अछि।पथिक जी ब्रह्मा आ ब्रह्मके समाने बुझैत छथि।जखन कि दुनूमे अंतर अछि।बरहम ब्रह्म शब्दक अपभ्रंश अछि,नहि कि ब्रह्माक।खैर,ओ ई मानै छथि जे निर्गुण ब्रह्म सगुण(सद्गुण नहि) आ साकार रूपमे मिथिलामे सम्मानित आ पूजित छथि।ओ इहो लिखैत छथि जे इएह ब्रह्म शब्द बादमे बरहम आ ब्राह्मण भ’ गेल हैत।
डा० राम सेहो अपन आलेखमे सगुण डीहबार/गाम देवताक साकार रूपक वर्णन कयलनिहैँ।हुनका जनेऊ धारी बतौलनिहैँ।दोसर जे ब्रह्मकेँ बरहम उच्चारण ब्राह्मणेतरे लोक करै छथि।तेँ भ’ सकैयै ब्राह्मण आ अन्य शिक्षित वर्ग सभ ब्रह्मकेँ ब्राह्मणे कह’ लागल होथि।
तेँ दुनू आलेखस’ स्पष्ट अछि जे आपद विपदमे लोक निर्गुण ब्रह्म के साकार आ सगुण रूपमे गोहारि करैत छल आ हुनका बरहम, ब्राह्मण, ग्राम देवता,डीहबार आदि नामस’ पूजन करैत छल ।तेँ बरहम आ ब्राह्मण दुनू डीहबारेक सम्मानित नाम अछि।
हमरा जनैत ई ककरो सुनियोजित चालि आ कुचक्र नहि।ई समाजक दू वर्गक देल नाम अछि।बरहम बाबा कही कि ब्राह्मण बाबू ई समाजेक दू वर्गक देल सम्मान अछि।ई जाति सूचक नहि , आस्था सूचक अछि ।
हम त’ आइ धरि कोनो लोकके ककरो नाममे बाबू लगबैत सुनलौहैँ,जातिमे बाबू लगबैत नहि।जेना केओट बाबू,तेली बाबू,दुसाध बाबू, राजपूत बाबू, कायस्थ बाबू आदि आदि।तेँ हमरा जनैत एहि गीत मे ब्रह्मे बाबा या बरहम बाबाके लेल ब्राह्मण बाबू कहल गेल अछि।
ओना विमर्श जतेक हैत,ओतेक विद्वान लोकनिक विचार सामने आयत आ संशय ख़तम हैत।
साभार धन्यवाद।
आचार्य रामानंद मंडल -Rewati Raman Jha डा महेंद्र नारायण राम के विचार जातिवादी वा ब्राह्मणवादी हय। ब्रह्म हो वा ब्रह्मा जनेऊ धारी त नहीं छतन। ब्राह्मणवादी जनेऊ चढ़ा देलन। ब्रह्म आ ब्रह्मा के ब्राह्मण कहना ब्रह्म आ ब्रह्मा के अपमान हय। बौद्ध दर्शन में पीपर तरह बैठल ध्यानस्थ बुद्ध के ब्रह्म कहल गेल हय। ज्ञानी के सेहो ब्रह्म कहल गेल हय। आब ब्राह्मण आब एकमात्र जाति हय। ब्राह्मण आब आध्यात्मिक पद न हय। विश्लेषण सामयिक होय के चाही। सधन्यवाद।
आचार्य रामानंद मंडल -Rewati Raman Jha डा महेंद्र नारायण राम के विचार जातिवादी वा ब्राह्मणवादी हय। ब्रह्म हो वा ब्रह्मा जनेऊ धारी त नहीं छतन। ब्राह्मणवादी जनेऊ चढ़ा देलन। ब्रह्म आ ब्रह्मा के ब्राह्मण कहना ब्रह्म आ ब्रह्मा के अपमान हय। बौद्ध दर्शन में पीपर तरह बैठल ध्यानस्थ बुद्ध के ब्रह्म कहल गेल हय। ज्ञानी के सेहो ब्रह्म कहल गेल हय। आब ब्राह्मण आब एकमात्र जाति हय। ब्राह्मण आब आध्यात्मिक पद न हय। विश्लेषण सामयिक होय के चाही। सधन्यवाद।
पत्रकार रोशन झा के फेसबुक वॉल से –
दुई भाई छलियै ब्राह्मण एसगर कियै एलियै यौ अहां ब्राहमण बाबू
एहि गीतसं साफ छै जे ब्राह्मण गीत माने बरहम बाबा या ब्रह्माजीक गीत नहि छियै। बिना पढ़ने अगर अचार्य बनबै तं एहने एहन पागल वला पश्न ठाढ करबै। दोसर बात ई मिथिला छियै। एतय बाभन सोल्हकन करबाक अछि तं करू मुदा गामे गाममे सलहेसक पुजा सेहो होइत छै। हमरा नहि पता सलहेश बाभल छलखिन या सोल्हकन।
नोट : हमरा नजरि मे शिक्षित लोक बाभन छै आ मुर्ख लोक सोल्हकण
आचार्य रामानंद मंडल -अंहा राजा सलहेस के सेहो संदेहास्पद बना देलिय।धन्य छी अंहा। सधन्यवाद।
आचार्य रामानंद मंडल -केते बाभन आचार्य सेहो ब्राह्मण बाबू गीत के ब्रह्म बाबा के गीत मानैय छैय।इ गीत दोसरो गीत हो सकैय छैय कारण गीतकार चालाक रहलन।अपन नाम न देलन। ब्रह्म बाबा गीत के पैरौडी बना देलन। संस्कृति के ब्राह्मणी करण भेल हय।प्रो मायानंद मिश्र के मैथिली साहित्यक इतिहास चीख चीख के कह रहल हय।कि इ सभ गुरु घंटाल बाभन के काज कैल हय।त लोग प्रो मायानंद मिश्र के नकार देलन। हुनका मृत्यु के लगभग चौदह वर्ष बाद पोथी छपायल।आइ हुनका पूजल जाइ हय परंतु विचार अछूत बनल हय। जौं अंहा के बात सत्य हय त मिथिला -मैथिली , मिथिला राज्य निर्माण मंच पर ब्राह्मण बाबू गीत गनाइ त बिल्कुल उचित न हय।इ सभ बंद करू।सधन्यवाद।
निष्कर्ष -ब्राह्मण बाबू यौ गीत ब्रह्म बाबा गीत के ब्रह्म के ब्राह्मण में बदल देल गेल हय जैसे ब्रह्म बाबा आ ब्राह्मण मे भ्रम पैदा क के ब्राह्मण जाति के महिमा मंडन कैल गेल हय।इ साहित्यकार दिनेश यादव नेपाल के भाषा, साहित्य आ मानक अनुसंधान पोथी से प्रमाणित होइ हय। पत्रकार रोशन झा के अनुसार ब्राह्मण गीत ब्रह्म आ ब्रह्मा गीत न हय। ब्राह्मण बाबू यौ के केवल ब्राह्मण गीत हय। ब्राह्मण बाबू यौ गीत मिथिला मैथिली आ मिथिला राज्य निर्माण मंच से होइत रहय। ब्राह्मण बाबू यौ गीत ब्राह्मण जातीय गौरव गीत हय।अइ गीत के सार्वजनिक मंच पर गनाइ उचित न हय। ब्रह्म आ ब्रह्मा के ब्राह्मण कहना ब्रह्म आ ब्रह्मा के अपमान हय। कहियो ब्राह्मण आध्यात्मिक पद रहय परंच आब ब्राह्मण एकटा जाति हय।बरहम आ बराहमन गीत के घालमेल शर्मनाक कृत्य हय।
@आचार्य रामानंद मंडल सीतामढ़ी।