बरसो रे मेघ (कजरी गीत)
प्यासी धरती की तृष्णा मिटाओ रे मेघ।
आज गरजो नहीं तुम बरसो रे मेघ।
कब से राहें तुम्हारी
अपलक देख रही
ग्रीष्म भर तपती
जेष्ठ भर जलती
प्यासी अवनी की तृष्णा बुझाओ रे मेघ।
जीव व्याकुल हुए
जा रहे है सभी
बुन्दो की आस में
जी रहे हैं सभी
सुखे प्राणों में नीर बहाओ रे मेघ।
पपीहा बोल रहा
कजरी भी शान्त है
न मयूर नाच रहा
दादुर भी शान्त है
आज सबकी खुशी तुम बढ़ाओ रे मेघ।
तुम आओगे हरि
याली छा जायेगी
ताल भर जायेंगे
पूष्प खिल जायेंगे
आज धरती की उपमा बढ़ाओ रे मेघ।
तुम्ही से सारे तीज
और त्यौहार है
तुम्हीं से जीवन
खुशियों की बहार है
आज आनन्द के गीत सुनाओ रे मेघ।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’