बरसो मेघ
मेघ ! क्यों रूठकर जा रहे।
कौन से छोर पर जा रहे?
मौसमी कोई हलचल नहीं।
मेदिनी में भरा जल नहीं।।
बोल दो क्या हुई है खता।
यूँ बिखरकर किधर जा रहे?
धूप में जल रहा है बदन।
प्राण तड़पा रही है तपन।।
मान लो बात ठहरो जरा ।
क्यों दबे पाँव घर जा रहे?
पास आओ हठीले सनम।
यूँ न ढाओ करोड़ों सितम।।
आ गया पास सावन नया ।
साथ क्यों छोड़कर जा रहे?
जगदीश शर्मा सहज