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13 Jun 2023 · 1 min read

बरसों से जिन्हें अपना माना

बरसों से जिन्हें अपना माना
अब कैसे उन्हें समझूं बेगाना

मैं अपनी अना में दूर हो गई
दिल को नागवार था दूर जाना

क़ाफ़िले में चल के मुमकिन नहीं
अपनी अलग पहचान बनाना

मुझे मग़रूर किया तिरे ग़ुरूर ने
मुझे आता था रिश्तों में झुक जाना

मुआफ़ करें मिन्नतें कर ना सकूंगी
अब बेहतर है तअल्लुक़ टूट जाना

त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)

1 Like · 112 Views
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