बरसात
“बरसात”
संक्षिप्त (लघु कथा)
क्रमशः
उत्तर दिशा में एक पहाड़ जो पूरब से पश्चिम की ओर फैली थी जिसकी आसमान को छूती हुई उची -उची चोटिया और पहाड़ो से उठती सफेद जलवाष्प बहुत सुंदर लगते। तलहटी पंछियो के कलरव से गूँजते बन किसी को अपनी ओर आकर्षित कर ले ।उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक नदी जो ,पहाड़ो से आती,नदी के पाट बहुत चौड़ी थी ।बरसात में बहुत अधिक बारिश होती कभी- कभी बाढ़ भी आती थी। जिसके कारण दूर- दूर के गांव में तालाब कमल के फूल और पत्तियों सहित पूरे साल पानी भरे रहते थे ।
सभी लोग बहुत खुशहाल थे ।लोगो मे प्रेम था लगाव था ,एक दूसरे की सहयोग करते थे ।नदी के पूरबी तट पर एक नगर बसा था , जिसका नाम चंदनपुर था।मकान पक्के थे ,दुकाने, बाजार सब थी बड़ी रौनक रहती थी। दिन- रात सुदूर गांव से लोग समान खरीदने नगर में आते , लोग पैदल ही चल कर आते थे ,कुछ लोग बैलगाड़ी और घोड़ा गाड़ी से भी आते ,उसी नगर में एक मकान में शिवा उम्र लगभग 22बर्ष भी रहता था। जो नगर से पूरब दिशा जहा से आने में 3 से 4 दिन लगते है किसी गाँव से नगर में पढ़ाई करने आया था।
मकान मालकिन एक महिला थी जिसकी उम्र 45 बरस , बहुत ही नेक , शिवा उन्हें मौसी कहता उसका भोजन भी वही बनाती बहुत प्यार करती थी।अपने बच्चों के जैसे।शिवा के कमरे में एक तखत था ,एक आलमारी जिसमे कुछ कॉपी और किताबे थी और कुछ कपङे इत्यादि ।
नगर से थोड़ी दूर उत्तर दिशा में नदी से पूरब एक विद्यालय था जिसमे बहुत ही उच्च स्तर की पढ़ाई होती थी ।जिसके शिक्षक बहुत ही बिद्वान थे , अनुसासन भी कड़ी थी ,दूर -दूर के बच्चे उच्च शिक्षा के लिये आते थे , बहुत नाम था बिद्यालय का ।सैकड़ो बच्चे पढ़ते थे । बिद्यालय में दाखिला के लिए बहुत कठिन परीक्षा होती जिसमे कम बच्चों का ही चयन हो पाता , काफी कमरे थे चारो तरफ पेड़ पौधे थे खेल का मैदान भी था ।बहुत रौनक थी ।शिवा भी उसी बिद्यालय का एक छात्र था ।
लङके और लङकियाँ साथ मे पढ़ते थे , वर्षा ऋतु में विद्यालय बन्द हो जाती क्यो की बारिश बहुत होती थी रास्ते बन्द हो जाते थे ।नदी तालाब सब पानी से भर जाता था ।
विद्यालय जाते समय रास्ते मे बच्चों का झुंड एक साथ जाते ,बाते करते हुए तरह- तरह की बाते होती हसी मजाक करते खेलते- कूदते हुए आतेऔर जाते।
रास्ते पे अक्सर एक लड़की से भेंट हो जाती जो घोड़ा गाड़ी में आती लेकिन बच्चों के झुंड को देखकर गाड़ी से उतर जाती , और उन लोगो के साथ पैदल ही चलने लगती । बहुत इज्जत थी उसकी ,लडकिया हमेशा उसके आस -पास ही रहा करती, बहुत सुंदर थी । राजसी ठाट- बाट थे उसके ,बच्चों ने बताया जमींदार साहब की बेटी है बहुत बड़ी हवेली है इसकी, नौकर- चाकर सब है किसी चीज की कमी नही।लड़की का नाम चित्रा था।
नगर से कुछ दूर दक्षिण -पूरब दिशा में एक गांव था जहाँ के जमींदार साहब थे ।बड़ी -बड़ी हवेली थी दो मंजिला तीन मंजिले इमारते थी ।जमींदार साहब बहुत ही नेक थे लोगो की मदद करते । सभी लोग बहुत खुश थे।साहब की बहुत इज्जत थी।
अक्सर विद्यालय आते- जाते रास्ते मे शिवा और उस लड़की से भेंट होती ,और धीरे- धीरे बाते होने लगी ।अब तो हमेशा साथ मे ही पढने जाते और साथ मे ही आते ढेर सारी बाते करते हुए ।जमीन नीची थी सड़क के दोनों तरफ बहुत सी तालाब थी जिसमे सूंदर सूंदर कमल के फूल खिले थे ,बहुत अच्छे लगते , विद्यालय से आते समय अक्सर उन बच्चों की टोली, रास्ते में रुक कर कमल के फूल तोड़ते और कुछ देर रुक कर आपस मे बाते करते ।
रास्ते मे आते -जाते बाते करते शिवाऔर उस लड़की से बहुत लगाव हो गया अब तो रोज आँखे एक – दूसरे को ढूढती।
उसके मकान से पूरब थोड़ी दूर एक बड़ी मकान थी ,एक दिन जब वह अपने छत पे बैठा था,तभी उस बड़ी मकान के छत पे देखा वो लड़की कुछ लड़कियों के साथ में टहल रही है वह टकटकी लगाकर उधर देखने लगा तभी वो भी उसे देखी और बहुत खुश हुई ।मौसी भीआ गयी ,उसने बताया जमींदार की बेटी है ।घर भी उन्ही का है कुछ लोग यही रहते है ए सब उसकी बहने है ।कभी- कभी गांव से नगर घूमने आते है।उसने मौसी से कहा हम उनको जानते है हम एक ही विद्यालय में पढ़ते है ।अब ओ अक्सर यहां आती ।
चित्रा के गाँव के कुछ लड़के उसके मित्र भी थे ।कभी-कभी उनके साथ उनके गांव जाता था। रास्ते मे दोनों किनारे तालाबेऔर पेड़ -पौधे ।गांव में पहले चित्रा के घर थे ।
बड़ी -बड़ी हवेली तीन मंजिली घर मे बड़ी- बड़ी खिड़किया थी ,जो उत्तर के तरफ खुलती थी । उसके घर भी जाता , उस लड़की से भी भेट होती ,आते और जाते समय अक्सर ओ उसी खिड़की से देखती।
एक दिन दोपहर का समय, विद्यालय में छुट्टी हुई थी सभी बच्चे कुछ खा – पी रहे थे ।कुछ खेल रहे थे, भीड़ से कुछ दूर उत्तर दिशा में शिवा और चित्रा बैठे थे सामने उची उची पहाड़ियों की चट्टाने दिखाई दे रही थी ,नीचे तलहटी में घने पेड़ । चित्रा ओ देखो सामने पहाड़ो से उठते बादल ,आसमान में कैसे तैर रहे है। कितना सुंदर ।तभी तैरते बदलो में एक ऐसी आकृति बनी ।ओ देखो ऐसा लगता है मानो तुम एक अप्सरा हो और उन बदलो के बीच से उतर रही हो ।
तभी चिड़ियाओं का एक झुंड आया और उड़ते हुए निकल गया । चित्रा के आखो में आशु थे कुछ डरी सी लग रही है ।
चित्रा क्या हुआ ?तू रो रही है, इतनी घबराई क्यों है ?और ओ फफक -फफक कर रोने लगी ।कुछ देर के बाद शांत हुई ।और
रुधासे स्वर में चित्रा ने कहा -‘ओ जो काले काले बादल देख रहे हो न शिवा ओ बादल नही है वे काले- काले नाग है जो हमे डस रहे है ‘ तुम नही समझोगे।
बरसा ऋतु आने वाली है ऐसे ही काले- काले बादल निकलेंगे बरसा होगी सारे नदी -तालाब पानी से भर जायेगे और फिर रोने लगी।
बरसा ऋतु में बहुत बारिश होती थी ,चारो तरफ पानी ही पानी नदी में बाढ़ भी आती , रास्ते बंद होने के कारण विद्यालय 4 महीने के लिए बंद हो जाता ।दूर के विद्यार्थी अपने -अपने गाँव को चले जाते थे। फिर जब नदी में पानी कम होती तब आते ।
चित्रा भी इशी लिए रो रही थी कि अब विद्यालय बन्द होने का समय आ रहा हैऔर शिवा भी अपने गाँव चला जाएगा।वह समझाता है ,अरे पगली तो क्या हुआ ?बरसा ऋतु बन्द होने के बाद मैं वापस आऊगा ।जाने का मन तो मेरा भी नही है । पढ़ाई पूरी करने के बाद हम यही रहेंगेऔर हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे ।
चित्रा- पता नही क्यो मन एक अनजान डर से घबड़ा रहा है ।मैं तुम्हारे लिए गंगा मैया से प्रार्थना करुँगी की तुम फिर वापस आओगे ।
शिवा- हा चित्रा मैं जरूर आऊँगा ।’तुम यहाँ की मिट्टी ,यहां के लोग सब कुछ हमारे दिल मे हैं ।हम जरूर आएंगे ।’
धरती ,आकाश ,सूर्य ,नदी सब इस बात के साक्षी है ।
कुछ दिनों के बाद विद्यालय बन्द हो गया 4 महीनों की अवकाश हो गयी। सभी छात्र जो दूर से आये थे आपने अपने घरों को चले गए वह भी अपने गांव चला गया।
क्रमशः.….
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क्रमसः…..
4 महीने बाद
नदी अभी भी पानी से भरी हुई , पानी कुछ कम जरूर हुआ है ।नगर बिरान मकाने टूटी -फूटी आधी नगर कट के नदी में समा गयी है पूरे नगर में मिट्टी औरबालू के ढेर लगे है कोई आदमी नही दिखाई देता ।मन किसी अनहोनी से भयभीत डरा हुआ आखिर कैसे हुआ ? कहाँ गए सब ?चित्रा कहाँ होगी? कैसी होगी ?कही किसी मुसीबत में तो नही, तरह तरह की बाते मन मे उठती और वह पागलो की तरह इधर उधर दौड़ता। शायद कोई मिल जाये लेकिन कोई नही मिला ।काफी दौड़ -भाग करने के बाद वह एक ऐसे जगह पहुचता है जहा नदी के किनारे एक मंदिर था ,जो नदी की कटान में बच गया था ।वही 4-5 लोग मीले जिनमे कुछ महिलाएं भी थी ।
वह बिल्कुल घबड़ाया उनसे पूछता है ये सब कैसे हो गया? कहाँ गए सब ?माता जी यहां एक घर था जिसमें मौसी रहती थी , क्या आपको पता है कहाँ गए सब लोग?
उस औरत ने कहा बेटा बहुत बड़ी बिपदा आयी थी, इस बरसात बहुत बारिस हुई लगातार कई दिनों तक बारिस ।हुई रुकने का नाम नही ले रही थी। ऐसा लग रहा था कोई आसमान से पानी उड़ेल रहा हो ।बहुत भयंकर प्रलयकारी बाढ़ आयी थी, पूरे शहर को अपनी आगोश में ले लिया ।
कुछ भी नही बचा बहुत लोग पानी की बहाव मे समा गए ।कुछ लोग जान बचाकर भागे भी, पता नही कहाँ गए।उन मिट्टी और रेत के टीलों में एक लड़का जो इस समय चेतना बिहीन ,बेबस, लाचार, दुखी ऐसे खड़ा है जैसे मानो वह भी रेत का एक ढेर हो।
यदपि वह भूख -प्यास से ब्याकुल था,फिर भी वह दौड़ता हुआ चित्रा के गांव के तरफ जाने लगा रास्ते मे सिर्फ वह भयानक और डरावनी उजाड़ बस्तिया ही दिखती ,बहुत मुश्किल से उन रेत के टीलों और पानी के गढ्ढो के बीच से होकर वह जाता ,रास्ते मे कोई आदमी नही ,ये सोचकर चित्रा कहाँ होगी?
और उसका दिल दहल जाता बहुत कठिनाइयों का सामना करते वह उस हवेली पे पहुच गया ,ये क्या?यहा भी वही तबाही ,कोई आदमी नही मकान टूटे -फूटे मिट्टी बालू के ढेर पानी अभी भी गाँव मे भरा हुआ ।वह बहुत दौड़ा बहुत खोजा लेकिन चित्रा कही नही मिली………………………….. ।————————————-
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सुनील पासवान कुशीनगर