बरसात
सार छंद
मात्रा भार
16-12 अंत गुरु , गुरु
बरसात
घोर नाद जब जल बरसाए,
रौद्र रूप दिखलाए।
ताल-तलैया सब भर जाते,
तांडव नाच नचाए।
रिमझिम सी मधुर फुहारों में,
जीव-जंतु मुस्काए।
तपन ताप की अंग जलावे,
प्रसून मुख मुस्काए।
तरुवर धरती शीश झुकाते,
आंधी खूब चलावे।
दरिया माटी खूब बहाते,
तीव्र वेग जब आते।
कहीं बाढ़ का संकट आवे,
जल ही जल की माया।
कहीं दरक के पर्वत जावे,
विकट काल की छाया।
कभी होता मौसम सुहाना,
कभी काल बन आवे।
कभी खिलावे मुखड़े जग के,
कभी बहुत रूलावे ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश