बारिश
1222 1222
मुझे अक्सर रुलाती है
तुम्हें अक्सर हंसाती है
कहीं बह जाए ना फसलें
ये चिंता भी सताती है ।
पला है द्वंद मन में यह
अगर बारिश ना हो पाए।
तो खाएगा ये भारत क्या
अगर अकाल पड़ जाए।
टपकता है मेरा छप्पर
मगर करता दुआएं हूं।
कि बारिश खूब हो जाए
कि बारिश खूब हो जाए।
टपकते बारिशों के संग
मैं अक्सर अश्क खोता हूं।
तुम्हें घर है तो खुशियां है
मैं बेघर हूं तो रोता हूं ।
मुझे फिर भी नहीं कोई
गिला बारिश क्यों आती है?
मुझे अक्सर रुलाती है
तुम्हें अक्सर हंसाती है
कहीं वह चाहे ना फसलें
यह चिंता भी सताती है!!
दीपक झा रुद्रा