बरसात के बहाने
बरसात में नही निकले हम नहाने के लिए .?
तेरी याद में बहते आँखों से अश्क़ों को छुपाने के लिए..!!
तुम क्या जानो, ये मोहब्ब्त के बादल बरसते है कैसे..?
इन बादलों को, बरसात के बहाने बरस जाने के लिए..!
ये बूंद जो लगती है पानी की गिरती है आँखों से
ये गम है जो निकलता है दिल के संभल जाने के लिए..
तुम क्या जानो ये दिल के दर्द होते है कैसे..?
कड़कती है बिजली, दिल के तुड़के तुड़के कर जाने लिए…!
ये प्यासी जमीन रहती है प्यासी जब तक
भले ही बिखरी हों सावन की फुहार जब तक
फटते है बादल, चीर कर आसमां का सीना
जमीन के दिल मे धधकती मोहब्ब्त की आग को बुझाने के लिए..!
ये मोहब्ब्त आसान नही है, खुदा
बरसीं है तेरी भी आँखें
कभी सीता तो कभी राधा के लिए…