” बरसात अश्कों की “
– ” बरसात अश्कों की “-】
मुझसे हिज्र की अब बात नहीं होती ।
ज़िंदगी में अमावस की रात नहीं होती ।।
बेशक़ीमती हैं….. उनकी याद के मोती ।
आँखों से अश्कों की बरसात नहीं होती ।।
भीड़ में भी मुझको…… पहचान गए वो ।
इससे बेहतर कोई……सौग़ात नहीं होती ।।
चाँद भी निकलता है तारों को साथ लेकर ।
तन्हा कभी कोई…….. बारात नहीं होती ।।
मुहब्बत नहीं… रहम कर रहे हैं मुझ पर ।
“काज़ी” इससे बढ़कर कोई ख़ैरात नहीं होती ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , इकबाल कालोनी ,अहिल्या पल्टन
इंदौर ,जिला – इंदौर
मध्यप्रदेश