बरगद का संदेश
एक बूढ़ा बरगद सीना चौड़ा किए,
अपनी विशालता दिखला रहा,
एक राहगीर फिर वहां आया,
थका, हारा, आलस में डूबा।
बूढ़े बरगद ने अपनी टहनी झुका दी,
अपना सारा स्नेह राहगीर पर लूटा दी,
और स्नेह भरे लब्जों से पूछा,
क्या कष्ट है तुझे ए मुसाफिर।
तत्काल राहगीर ने जवाब दिया,
अपना सारा गुस्सा उतार दिया,
बोला तुझे क्या पता मेरी परेशानी,
तू तो रहता एक जगह खड़ा।
बूढ़ा बरगद झल्ला उठा,
तत्काल ही जवाब दिया,
दुनिया के सारे अनुभव समेटे खड़ा हूं,
तेरे जैसे कई से मिलकर खड़ा हूं।
जीवन के हैं, तीन मंत्र
धर्म, कर्म और मर्म,
जिसने इसको अपना लिया,
समझो वो सफल हुआ।
अगर किसी का इज्जत किया,
तो इनाम में इज्जत पाओगे,
अगर किसी की निंदा की,
तो दंड अवश्य पाओगे।
मेरी बातों कर गांठ बांध लो,
ये तीन मंत्र अपना लो,
वरना जीवन भर पछताओगे,
ये दंभ यहीं रह जाएगा।
और कुछ भी समझ न पाओगे,
विनाश को आमंत्रित मत करो,
ये जीवन बड़ा मूल्यवान है,
इसकी सौहाद्र्ता का ध्यान रखो,
इसकी महत्ता का गुणगान करो।