बरसात
छाई घटा घनघोर
नाचे वन में मोर
देखो बरखा का जोर
शाम हो या होवे भोर
फैली हरीतिमा चहुंँ ओर
ललचाए मन का चोर
सुनो पवन का शोर
पवन पेड़ों को रही झकझोर
जल का कहीं ओर न छोर
प्रियतम बंधे प्रेम की डोर
पंछी ढूँढे अपना ठौर
ओम् ये बरसात का दौर
ओम प्रकाश भारती *ओम्”