बरखा
बरसती है बरखा तो बरसने दो ना
कड़कती है बिजली तो कड़कने दो ना
छोड़ो भी अब फिक्र उम्र दराज़ होने की
मचलता है मन तो मचलने दो ना
फिर वो बचपन का लम्हा जी लूँ तो ज़रा
कागज़ की कश्ती फिर से बहा लूँ तो ज़रा
मत छेड़ो तुम आज वो प्यार के नग्में
छेड़ ही दिए हैं तो फिर से नाच लूँ तो ज़रा
वीर कुमार जैन
23 जुलाई 2021