बरखा
बरखा…
श्यामल घन बरसे छन छन
गिरे बिजुरिया उर के आँगन
स्फुरित हिया, हुलके जिया
तरसे दरस को प्यासे नयन
बूंदों के दर्पण आनन निहारुँ
हर आहट भीगी लटें सवाँरुँ
नभ मेघ नगाड़े, दे पी संदेसा
अभिनंदन पलकन पथ बुहारुँ
तुम बिन बैरी फुहार न सुहाए
भीगी चुनरी वपु लिपटी जाए
ईप्सा मेरी तुझ संग आलिंगन
ज्यूँ बूँदें तपती धरती में समाए
अंग अंग भिगो गया सावन
तुम भी संग भिगो न साजन
प्रेम सुधा की इस बरखा में
सराबोर हो दोनों,तन और मन
रेखांकन।रेखा