बरखा
हाइकू
श्यामल घटा
दमकत दामिनी
घन बरसे।
ओ घनप्रिया
मेघाच्छादित नभ
आयी बरखा।
श्रावण मास
नाचे सौदामिनी
बरसे नैना।
छाये बदरा
घनप्रिया के संग
झूम घटाएँ।
मैं विरहिन
चमके है दामिनी
आजा पिया तू।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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