बरखा रानी की शरारत ( हास्य व्यंग कविता)
ये बरखा रानी है बड़ी नटखट ,
कुछ न कुछ करती रहे खटपट ।
पहले तो अपने दर्शनों को तरसाये ,
और गर आ जाए तो बरसे झटपट ।
एक पल में कर दे सड़को और नालों को बराबर,
सुझाई न दे कहां है नाला और कहां है सड़क ।
दुनिया भर के कीड़े , कीट पतंगों को न्योता दे डालती ,
पूरे घर में घूमते यह बेधड़क ।
नगर पालिका से तो इसका जन्म जन्म का है बैर ,
उसकी शहरी व्यवस्था की पोल खोल दे यह फटाफट।
कोई उपाय नहीं सूझता ,क्या किया जाए ?
जो भी करे प्रयत्न ,सब पर अपना पानी फेर जाए ।
आसमान से गरजते हुए बरसे जब यह सरपट ।
कहीं तो एक बूंद के लिए तरसाए ,
और कहीं डुबो दे पूरा शहर का शहर।
इसका मिजाज आम इंसान तो क्या ,
मौसम वैज्ञानिक को भी समझ न आए ।
ऐसी छुपी रुस्तम है यह नटखट ।
यह बरखा रानी है बड़ी नटखट।