बम बनाकर, बम हो गए
अपने भौतिक विचारों से,
और कलुषित व्यभिचारों से,
देखो ना हम क्या हो गए?
बम बनाकर, बम हो गए।
मानव का ही सोचा विस्तार,
मानवता पर ना किया विचार,
जमीन पा हम ज़मीर खो गए,
बम बनाकर, बम हो गए।
कितना चिकना सुंदर ऊपर,
सबसे बुद्धिमान है भू पर,
घृणा बीज दिलों में बो गए,
बम बनाकर, बम हो गए।
बम है विनाश का ढेला,
घृणा गद्दारी का रेलमरेला,
भर, आंखें बंद कर सो गए,
बम बनाकर, बम हो गए।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.
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