बन रहा अचार भावनाओं का!
शीर्षक – बन रहा अचार भावनाओं का!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान
मो. 9001321438
बन रहा अचार भावनाओं का
स्नेहक(तेल) कितना है नहीं जानता
आचार बनना स्नेहक पर निर्भर
बूफण भी आ सकती है बिना स्नेहक।
अचार और आचरण आसान नहीं
मार्ग पुराना हैं राही नये
थोड़ी सी चूक और सडांध तय
डर है मेरा ही अचार न बन जाये।
अचार भावनाओं का बनता रोज
डर भी उभरता खाकर चोट
कभी बूफण से कभी सडांध से
संकोच! कब तक रहेगा सुरक्षित।
फफूंदी आने पर बचा पायेगा
ऊपर से डाला स्नेहक या बचेगी उदासी
स्नेहक ही रक्षक जड़-चेतन का
बन रहा है अचार भावनाओं का।