बन कर राम दिखादो तुम
आन किये थे धरती पर जो, कर वो काम दिखादो तुम।
सीता मैं भी बन जाऊंगी ,बन कर राम दिखादो तुम।
वसुधा के आँचल में पल मैं,
चाँद सितारों तक पहुँची,
त्याग समर्पण सत के बल पर,
बिन हथियारों के जीती।
जितने मेरी झोली में हैं, छू आयाम दिखादो तुम।।1।।
रास रचाना याद रहा बस,
ज्ञान दिया वह भूल गये
धर्म जीत कर पाप धरा से,
नाश किया वह भूल गये।
लुटते चीर बढाये जिसने, बन घनश्याम दिखादो तुम।।2।।..
बद अच्छा बदनाम बुरा है,
सच की गाथा भी सुनलो,
किस साँचे में ढलना तुमको,
मजबूती से वह गढलो।
समय अंत तक व्याप्त रहे जो, कर सदनाम दिखादो तुम।।3।।..
भेद भाव सब तज मन से वह,
सबको रोशन करता है
वेद विधि सब रीत निभाये,
कभी न पथ से डिगता है।
अखण्ड तेज भानु सम लेकर,चल अविराम दिखादो तुम।।4।।
जर जमीं जोरू पाने को,
आपस में लड़ मरते हो
मर्यादा की चौखट लाँघे,
उनका सौदा करते हो।
नारी हित रामायण जैसा, कर संग्राम दिखादो तुम।।5।।
~मंजु वशिष्ठ~’राज’