बन्द दरवाजों के पीछे
मैं दरवाज़े खुल्ले रखता हूँ
कि लोग घर में मेरे आ सके
हवा को अपनी खुशबू से
हंसी से घर रोशन कर सके
मेरे संग तराने गुनगुनाएं सब
मेरे साज़ से ताल मिलाएं सब
पर जब सर्द हवाएं चलती है
और घर मे ठंडक बढ़ती है
कुछ जल्दी और कुछ देर से
सब अपने घरों को चले जाते हैं
अब बर्फ़ के गिरते रेशों को
और चाय की गर्म एक प्याली को
मैं थाम के अपने हाथों में
मैं हंसता हूँ, खुश होता हूँ
–प्रतीक