बनो तो सही
तुम जरा दीप माला बनो तो सही
इक क्षुधा का निवाला बनो तो सही
कंठ में ले लिया जिसने सारा गरल
शिव नही पर शिवाला बनो तो सही
माँ सदृश बनके अंचल में पालो हमे
लड़खड़ाते कदम है संभालो हमे
आप पहले कौशिल्या बनो तो सही
जानकी न बने तो जलादो हमे
प्यार लौ से पतंगा यूँ मन से करे
चांदनी प्यार जैसे चमन से करे
बंद कलियों में रस रंग लेता रहा
जिस तरह प्यार मधुकर सुमन से करे
चाँद को प्यार जैसे चकोरी करे
जिस तरह प्यार बचपन से लोरी करे
उस तरह आपसे प्यार करता हूं मैं
जिस तरह प्यार साजन से गोरी करे
इस तरह मैं बिना मोल बिकने लगा
ज्ञान का वो दिवाकर भी दिखने लगा
क्या भरा शील ‘सुशील’ में आपने
रामजी की कृपा से ही लिखने लगा ।