*बना शहर को गई जलाशय, दो घंटे बरसात (गीत)*
बना शहर को गई जलाशय, दो घंटे बरसात (गीत)
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बना शहर को गई जलाशय, दो घंटे बरसात
1)
ऐसा बरसा पानी छम-छम, गलियॉं ताल-तलैया
चौड़ी सड़कें तक यों डूबीं, तैरे झट से नैया
घर के कमरों तक में पानी, घुसता दिखा बलात्
2)
नाली-नाले बंद हो गए, कूड़ा-कचरा भारी
सड़कों पर पानी का जमना, क्षण-क्षण दीखा जारी
ढही व्यवस्था महानगर तक, नगरों की क्या बात
3)
घर की छत जो कभी न टपकी, ऑंसू भर-भर रोई
गीला सब सामान हो गया, सूखी जगह न कोई
अट्टहास जब किया प्रकृति ने, खाई सबने मात
बना शहर को गई जलाशय, दो घंटे बरसात
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451