बना माघ है सावन जैसा
बसंत ऋतु में मेंघों ने है
यह कैसी ताल लगाई है,
भोर पहर ही देखो नभ से
बरखा भी गाती आई है ।
रिमझिम रिमझिम गान सुनाती
मीठे मीठे भाव जगाती,
सप्त सुरों को अंग लगाती
मधुरिम सी सुबह सजाई है ।
बना माघ है सावन जैसा
भीगा भीगा भादो जैसा,
बरखा बसंत ऋतु की मानों
हो रही आज सगायी है ।
बरसे ओले बिन आहट ही
गरजे बादल बिन मौसम ही,
पड़़ पड़ पड़ पड़ गिरती बूंदे
ज्यों बजा रहीं शहनायी हैं ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल