बनारस
बनारस की नगरी में एक शाम गुजारी थी
रंगों वाली रात थी वो
संग भक्तों की टोली थी
जमा रंग जब भक्ति का
भोले भोले कर बैठे हम
उस रात गंगा तट पर
जीवन का अर्थ समझ बैठे
चिर निद्रा से तन को जगा आए
जब हरिश्चन्द्र घाट गये
देखा जब तन माटी का
मोह के धागे टूट गये
गंगा घाट पर जब
गंगा आरती की मधुर ध्वनि को सुना
रोम रोम जय विश्वनाथ की बोल उठा
व्यथित मन अनन्त शान्ती की ओर चला
जल कलश में भर तन
सीधे शिव की ओर चला
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)