बनारस लिख दूँ
न्योछार सकल ज्ञान को करदूँ
अपने विवेक से सरबस लिख दूँ
मां गंगे का तीर लिखूँ और
बाबा का धाम बनारस लिख दूँ
बाबा विश्वनाथ की धरती
तीनो लोकों से न्यारी है
जहाँ कोतवाल बाबा हैं मेरे
सब कहते भोले भंडारी हैं
बाबा की काशी को मन में रखकर
सारी दुनियाँ को बरबस लिख दूँ
मां गंगे का तीर लिखूँ और
बाबा का धाम बनारस लिख दूँ
संकट मोचन के संकट हरता
तेजधारी काया विराट
सब मोह माया है जग में
बतलाता है हरिश्चन्द्र घाट
बाबा विश्वनाथ के सम्मुख
काशी को स्वर्ग का अंतस लिख दूँ
मां गंगे का तीर लिखूँ और
बाबा का धाम बनारस लिख दूँ
तस्वीरें बस देखी है बाबा की
साक्षात् देखने की इच्छा है
बाबा वैसे सुनते हैं सबकी
मुझे अपनी बारी की प्रतिक्षा है
अपने मनोभाव को अब मैं
गंगा जल वाला पायस लिख दूँ
मां गंगे का तीर लिखूँ और
बाबा का धाम बनारस लिख दूँ
जितना ज्ञान मुझे है बाबा
चरणों में समर्पित करता हूँ
शब्दों का तुच्छ पुष्प -गुच्छ
आपको अर्पित करता हूँ
आपसे इतर कुछ लिखना हो तो
ज्योतिर्लिंग सकल मैं द्वादश लिख दूँ
मां गंगे का तीर लिखूँ और
बाबा का धाम बनारस लिख दूँ
-सिद्धार्थ गोरखपुरी