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13 Jan 2018 · 1 min read

बनारस के घाट

बनारस के घाट

बनारस के घाटों पर
सिर्फ़ कवियों की चिता
या समाधि नहीं लगाई जाती
अपितु वहाँ मुखाग्नि की चिंगारी से
कवियों और कविताओं का
जन्म होता आ रहा है
जन्म लेती है ऐसी कवितायें
जो पौष मास की ठंड को
अपनी ऊष्मा से गरमाती
मशाल और मिसाल बनतीं
उभरते कवि की रूह को
उकेरती एक जामा पहनाती है
जिसे न कभी कही हो किसी ने
न कभी सुनी हो किसी ने
कवितायें जो देश को
दिशा देने का सामर्थ्य रखती हो
समाज को आइना दिखाने
का दंभ भरती हो ।
पर ये तो भूतकाल का विवरण है
बनारस सामान्य भारत वर्ष सा क्यों दिख रहा है
मुखाग्नि तो आज भी जारी है
पर आज मशाल किसने थामा है
चिंगारी किसने पी रखी है
शोले कहाँ छुपा रखे हैं
और कहाँ छुपा रखे हैं
भविष्य को उसके वर्तमान से।

यतीश ८/१/२०१८

Language: Hindi
752 Views
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