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7 Apr 2019 · 1 min read

बनते बिगड़ते राजनीति

उन पर क्‍या विश्‍वास करें
जिन्‍हें है अपने पर विश्‍वास नहीं
वे क्‍या दिशा दिखाएँगे
दिखता जिनको आकाश नहीं

जिले की राजनीति में
बहुत बड़ी शतरंज बिछी
धब्‍बोंवाली चादर थी जिसकी
कटी, फटी, टेढ़ी, तिरछी
ऐन वक्त चादर चमक उठी

चाल वही, संकल्‍प वही
स्वागत में नकाब ओढ़े पट्टा लगाये
सारे के सारे रंगदार,
चौकीदार बन खड़े मिले

एक बाँझ वर्जित प्रदेश में
बहने लगी थी विकास की अविरल धारा
भटक गया लाचार कारवाँ
लुटा-पिटा दर-दर मारा
बिक्री को तैयार खड़ा
हर दरवाजे झुकनेवाला
अदल-बदल कर पहन रहा है
खोटे सिक्‍कों की माला

इन्‍हें सबसे ज़्यादा दुख का है कोई अहसास नहीं
अपनी सुख-‍सुविधा के आगे, कोई और तलाश नहीं

ख़त्‍म हुई पहचान सभी की
अजब वक़्त यह आया है
सत्‍य-झूठ का व्‍यर्थ झमेला
सबने मिल खूब मिटाया है
जातिवाद का ज़हर जिस किसी ने
घर-घर में फैलाया है
नारे लगाने हिदुत्व का
भगवा लहराने आया है।

उठ रही हैं तूफ़ानी लहरें, किनारे को ही आभास नहीं
नारे में भले आप सूर्य है चांद है
असल मे कोई प्रकाश नही।।

Language: Hindi
1 Like · 333 Views
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