||बदहाल किसान |हाइकू ||
||बदहाल किसान |हाइकू ||
“पालनहार
होता विमुख आज
अधिकारों से ,
लुटते इन्हे
प्रकृति और नेता
बिखरे आंसू ,
पेट की आग
खत्म होती उम्मीदे
जलता पेट ,
प्रगति चर्चा
ना सुहाए आखों में
जलता पेट .
असामयिक
प्रकृति की वर्षा
तोड़ती आशा ,
होता दफ़न
किताबों में किसान
उलझा शब्द || ”