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29 Nov 2016 · 1 min read

बदल लेती है रहगुजर कोई गिला नहीं करती

बदल लेती है रहगुजर कोई गिला नहीं करती
ठोकरें जहान की खाके हवाएँ गिरा नहीं करती

वज़ूद है मेरा शायद इस बात की गवाही को
दुनियाँ में सभी से तो ज़िंदगी वफ़ा नहीं करती

शब में होती है जो थोड़ी बहुत होती है उनकी
रोशनी यहाँ कद्र जुग्नुओं की ज़रा नहीं करती

ये नहीं के ना आयें गरमियाँ सरदी के बाद
देर से ही सही मगर ज़बां से फिरा नहीं करती

होती हैं तक़दीर से मोहब्बत की बरसातें
जहाँ होती है होती है रोके रुका नहीं करती

लग जाये तो लग जाये मेरे बस की बात कहाँ
अपनी और से तो में किसी का बुरा नहीं करती

हो भूले से भी किसी को इस से किसी से इसको
दिल के हक़ में ‘सरु’मोहब्बत की दुआ नहीं करती

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