‘बदल रे बंधु’
पथरीला पथ, मार्ग कटीला, स्मृतियों संग बहल रे बंधु।
अंतिम बेला शुरु हुई है, रह ले ख़ुद संग, बदल रे बंधु।।
नश्वरता से जुड़ कर देखा,
रिसते रिश्ते, बंधन कैसा।
छिनना था ही दौलत-पैसा,
कर विस्मृत, क्यों सजल रे बंधु।।
अंतिम बेला शुरु हुई है, रह ले ख़ुद संग, बदल रे बंधु।।
लहू बिखरता, फिर भी चुभता।
आँखो से आँखों को गड़ता।
हृदय की किरचें कितनी फैलीं,
क्यों जानेगा, संभल रे बंधु।।
अंतिम बेला शुरु हुई है, रह ले ख़ुद संग, बदल रे बंधु।।
मंज़िल एक हाँथ की दूरी,
क्षींण शक्ति लेकिन मजबूरी।
नैंनों की लाली दुश्वारी
घूँट लहू का निगल रे बंधु।
अंतिम बेला शुरु हुई है, रह ले ख़ुद संग, बदल रे बंधु।।
खोया क्या-क्या कहाँ से ढूँढो,
कदमों की ताकत से उलझो,
गुम लाठी अब नहीं मिलेगी,
एकाकीपन गरल रे बंधु।
पथरीला पथ, मार्ग कटीला, स्मृतियों संग बहल रे बंधु।
अंतिम बेला शुरु हुई है, रह ले ख़ुद संग, बदल रे बंधु।।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ