बदल गया जमाना🌏🙅🌐
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
उषा सवेरा करती अरुणिमा,
सुमन – सुगंधि वाता लाती।
दिनकर करों से अश्रू धरा की,
मिटाता मलिन धूमिल- दृष्टि ।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
धूप तमातम खिले परंतु
पराल की छत तले नमी होती,
बादल बरसने लगते तब भी,
नाली – गली न भरी होती।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
गठरी निंदा की, न बड़ी होती ,
होती ,हिताय ही अड़ी चोटी।
छलकते नयन दयापूर्ण गर,
सर्वस्व समर्पण कसौटी थी।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
हाटों में हाथ मिलते सभी के,
हाथों ने थामी जरूरत होती।
नुक्कड़ बैठे उकड़ू जन में,
परायापन की नहीं सृष्टि।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
हर घर में पकता मीठा – नमकीन
पर रिश्तों में मिलावट नहीं होती ।
पानी -पय ,अनमोल पेय कहाते,
इन पर, करदेय कहां लगती?
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
स्वच्छता – सेवा – सुरक्षा की,
कवच बनाते मिलकर खुद की।
वसन मलिन रह जाए, भाए,
पर मन- पंकिल नहीं व्यक्ति।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
विचार – अनेक , मति – नेक,
कलह नहीं , परामर्श देती।
हर हल संभव नहीं होने पर,
विकल्प संबल प्रदान करती।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।
कहीं अलग राग,
अनुराग, विराग परन्तु!
सराग ही सदा प्रीति होती ।
जुड़कर बिछुड़न केवल मौत से,
सौत जिसकी लक्ष्यार्थ अभिव्यक्ति।
अब वो जमाना ढल गया जब,
बातों में मिसरी घुली होती।।