बदल गए इस कदर
**** बदल गए इस कदर ****
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बदल गए इस कदर पता न था,
परत गई है नज़र पता न था।
न रोशनी ही मिली न अंधेरा,
तमस गया है पसर पता ना था।
गया हमें छोड़ कर अकेला ही,
दिखा मिरे ही मगर पता ना था।
तबाह होगा चमन न सोचा था,
उजड़ चुका वो नगर पता ना था।
उफ़ान पर जलस्तर न मनसीरत,
उखड़ गया है शज़र पता ना था।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)