बदल गई है प्यार की, निश्चित ही तासीर।।
दोहे की दो पंक्तियाँ, .रखतीं हैं वह भाव ।
हो जाए पढ कर जिसे,पत्थर मे भी घाव ।।
बदल गई है प्यार की, निश्चित ही तासीर ।
कहते थे जो इश्क़ का , पत्थर भारी “मीर ।।
छज्जों पर आने लगे, पत्थर नित्य तमाम ।
शायद पकने लग गए, अमुआ फिर आम ।।
रमेश शर्मा