बदले बदले से रहने लगे सब लोग यहां
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,!!
ग़ज़ल
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रखना द्वार सजा के तुम अपने घर का,
गिरे छाँव तो रखे.ख़्याल बुढ़े शज़र का।
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बदले बदले से रहने लगे सब लोग यहां,
रहे संभल,!कहीं धोखा न हो नज़र का।
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टकराता है जब कोई तुफानी लहरो से,
उसमे हौसला है ये जोश भरे असर का।
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खबर सभी को,यहां से है गुजरना मना,
गुजर जाऐ, फिर दोष नही है भँवर का।
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खुद से हारा,ओरो से क्या जीत सकेगा,
सच है मगर वो पता न दे अपने डर का।
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बिन मौसम के बदले मिजाज किसी का,
अब करे भी क्या “जैदि”, ऐसे बशर का।
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मायने:-
शज़र:- वृक्ष
बशर:- आदमी
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”