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8 Feb 2022 · 1 min read

बदला रंग पुराने पैरहन ने …

रूह के जिस्म से निकलते ही ,
बदला रंग ऐसा पुराने पैरहन ने ।

छीन गए सब ख्यालात और ख्वाब ,
काम करना बंद कर दिया ज़हन ने ।

खून का दौरा चलना बंद हुआ जैसे ही ,
जवाब दे दिया वहीं दिल की धड़कनों ने ।

नसें सारी सिकुड़ गई ,धमनियां रूक गई ,
रंग उड़ गया जिस्म का ,जकड़ लिया किसने ?

जिंदगी जिसे कहते थे और जिंदादिली ,
सब छीन गया ,जब दगा किया सांसों ने ।

यह कौन है ? किसकी मय्यत है यह ?
पहचानने से इंकार किया इस यकीन ने ।

पहचाने भी कैसे !अभी तलक तो अपना था,
जिंदगी ना रही तो मुंह मोड़ लिया बेगाने ने ।

एक रूह थी जिस्म में जिसे समझ न सके ता उम्र,
छूटते ही आईना दिखा दिया हमारी हैसियत ने ।

एक रूह थी तो जिंदगी थी जिंदादिली भी थी ,
जुदा हो गई वो तो यह शक्ल ले ली माटी के पुतले ने ।

मौत नाम है जिस चीज का है तो बड़ी संगदिल,
कितने ही इसके कारवां देखे गुजरते हुए अपने सामने।

कहने को तो बड़ी कड़वी मगर है हकीकत ,
देर से ही सही इसे मान ही लिया ” अनु ” ने ।

1 Like · 2 Comments · 370 Views
Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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