बदला रंग पुराने पैरहन ने …
रूह के जिस्म से निकलते ही ,
बदला रंग ऐसा पुराने पैरहन ने ।
छीन गए सब ख्यालात और ख्वाब ,
काम करना बंद कर दिया ज़हन ने ।
खून का दौरा चलना बंद हुआ जैसे ही ,
जवाब दे दिया वहीं दिल की धड़कनों ने ।
नसें सारी सिकुड़ गई ,धमनियां रूक गई ,
रंग उड़ गया जिस्म का ,जकड़ लिया किसने ?
जिंदगी जिसे कहते थे और जिंदादिली ,
सब छीन गया ,जब दगा किया सांसों ने ।
यह कौन है ? किसकी मय्यत है यह ?
पहचानने से इंकार किया इस यकीन ने ।
पहचाने भी कैसे !अभी तलक तो अपना था,
जिंदगी ना रही तो मुंह मोड़ लिया बेगाने ने ।
एक रूह थी जिस्म में जिसे समझ न सके ता उम्र,
छूटते ही आईना दिखा दिया हमारी हैसियत ने ।
एक रूह थी तो जिंदगी थी जिंदादिली भी थी ,
जुदा हो गई वो तो यह शक्ल ले ली माटी के पुतले ने ।
मौत नाम है जिस चीज का है तो बड़ी संगदिल,
कितने ही इसके कारवां देखे गुजरते हुए अपने सामने।
कहने को तो बड़ी कड़वी मगर है हकीकत ,
देर से ही सही इसे मान ही लिया ” अनु ” ने ।