बदला कब विधना का लेख
स्वाभिमान की रक्षा खातिर, सत्य मार्ग पर अड़े रहो।
काम नहीं करना है जिनको, हाथ जोड़ कर खड़े रहो।
लड़कर मरने वालों की हीं, गाथा गायी जाएगी-
कायर पिछलग्गू सत्ता के, लास सरीखे पड़े रहो।
सत्य है दौलत सभी के पास होना चाहिए।
पद प्रतिष्ठा भी अलग कुछ खास होना चाहिए।
जी रहा हर व्यक्ति दुनिया में मगर यह जान लो-
चल रही है सांस तो अहसास होना चाहिए।
कर्म तुम्हारे बस में मानव, बदला कब विधना का लेख।
क्यों पछताता है रे मूरख, हाथों की रेखा को देख।
नहीं समय से पहले कुछ भी, और भाग्य से कुछ अतिरेक-
मिलता है उतना हीं जितना, देता है दुनिया का शेख।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य