बदलाव
बदलते परिदृश्य
जैसे जैसे घर पास आता जा रहा था कुसुम का मुँह कलेजे को आ रहा था , कैसे करेगी वो माँ का सामना उसने माँ को हमेशा गहरी लाल साडी, आधे हाथों तक कड़े और चूडियों, माथे पर लाल बड़ी बिन्दी और , शायद यह उसके विचार क्षेत्र से अब बाहर हो गया था
” जब वह सोचती और सिर पर काफी दूर तक गहरी
माँग
लेकिन अब सफेद साड़ी, माथे की बिन्दी और हाथ की रंगीन चूडियां नही होंगी ।”
वह सोमेश के साथ विदेश में थी उसका भाई रतन और भाभी संगीता भारत में ही थे ।
पिता जी के देहान्त का समाचार मिलने पर वह सोमेश की छुट्टी और आने के लिए कोई फ़्लाईट नहीं मिलने से आ नही पाऐगे थे । अब वह जब पूरी सुविधा हुई तो एक महिने के लिए भारत आई थी । सोमेश भी उदास था वह भी अपने विचारों में खोया था ।
टैक्सी घर के सामने रुकी, संगीता ने दरवाजा खोला ।
सामान अंदर रख कर मैं सबसे पहले माँ के कमरे की तरफ भागी । माँ ने गले लगा लिया , लेकिन जैसा उसने सोचा था वैसा कुछ नहीं था ।
रात को सब खाना खाने बैठे , घर का माहौल हल्का था , भैया भी आफिस से आ गये थे । संगीता खाना परोस रही थी ।
माँ बता रही थी :
” बेटी तेरे पिताजी मेरे पति जरूर थे लेकिन उन्होंने मेरे चेहरे पर कभी उदासी नही देखी, समय समय पर हर क्षण वह मेरे साथ रहे । यदा कदा वह कहते भी रहते थे :
” मैं भले चला जाऊं लेकिन मैं सदा तुम्हारी यादों में बना रहूँगा समाज में तुम सम्मानजनक जीवन जीना तुम जैसी अभी खूबसूरत मुझ दिखती हो वैसी ही रहना ”
इतना कह कर माँ रो पड़ी थोडी देर रोने के बाद जब उनका गुब्बार निकल गया फिर बोली :
” संगीता को उन्होंने हमेशा बेटी की तरह रखा और अक्सर वह संगीता से भी ऐसा ही कहा करते थे ।
सवा महिना होने के बाद एक दिन संगीता ने पिता जी के चाहेनुसार साडी , चूडियां पहनाई और माथे पर बिन्दी लगाई और जगह साथ ले कर जाती है ।”
मैं सोच रही थी :
” अब ऐसा ही बदलाव होना चाहिए विधवा होना एक सामान्य घटना हो सकती है लेकिन अभिशाप नहीं। औरत के मानसिक क्लेश को बढाने के बजाऐ उसे साथ रखने और साथ ले कर चलना समसामयिक है ।”
लौटते समय मैं बहुत निश्चिंत थी पिता जी के विचारों और माँ भाभी के निर्णय से ।”